मुँह में कपड़ा या और कुछ ठूंस करके,
या फिर मुंह पर टेप की पट्टी चिपकाकर,
या अचेतनकारी कोई औषधि गटकाकर,
अथवा मुंह में पानी या कोई ज्यूस भरके !
आजका सरलतम ढ़ंग वो है गुपचुप-धन,
जिसे ही आज अपनाते हैं लगाके तन-मन !
सर्वव्याप्त है ये ही ढ़ंग जिसका ही चढ़ता रंग,
ये ही है स्थिति आज जैसे कुए में गिरी हो भंग !
क्या करेंगे पुलिस-कर्मी और क्या करेंगे कर्मचारी ?
क्या करेंगे अभियंता और कर-विभाग के सहचारी ?
कैसे करेगा गुजर-बसर कोई भी अनाचारी-भ्रष्टाचारी ?
कैसे चलेंगे मदिरालय-वेश्यालय जब न होंगे व्यभिचारी ?
लेन-देन यदि नहीं रहा तो सर्वत्र ही मचेगी मारा-मारी,
धन की अपरिहार्य चाहत तब केवल होगी इक लाचारी !
खाली हो जायेंगी भ्रष्टाचारियों की तिजोरी या अलमारी !
धार्मिक स्थलों से तब पलायन करते दिखेंगे सारे पुजारी !
“देख तेरे भगवान की हालत अब क्या हो गई रे इंसान,
मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारे, गिरिजाघर हो रहे हैं सुनसान”
यही रचेगा, बजेगा गीत तब जब कोई न रहेगा बेईमान,
यदि फिर आयेगा राम-राज्य तब ही हमारी बढ़ेगी शान !
Poet- ashwini kumar goswami
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